घरों तक पहुंचेगा सरकारी बैंक , मिलेगी जमा निकासी सुविधा

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 अब सरकारी बैंक आपके दरवाजे तक पहुंचेंगे। इस वर्ष अक्टूबर से ग्राहक घर पर भी नकदी जमा कराने और निकासी की सुविधा ले सकेगें। शुरुआत में 100 शहरों में यह सुविधा उपलब्ध होगी। इस काम के लिए अलग से डोरस्टेप बैंकिंग एजेंट नियुक्त किए जाएंगे। देश के सभी सरकारी बैंक डोरस्टेप बैकिंग सुविधा देगें। घर के दरवाजे पर वित्तीय सेवा हासिल करने के लिए मामूली शुल्क भी देना पड़ेगा। अभी हाल ही में 9 सितंबर को डोरस्टेप बैंकिंग सेवा का अनावरण किया गया।  डोरस्टेप बैकिंग सेवा में वरिष्ठ नागरिक , विधवा , विकलांग, आर्मी स्टाफ , सीआरपीएफ , छात्र , सैलरी वालें कर्मचारी , कारपोरेट ग्राहक , खुदरा दुकानदार , और रेहड़ी पटरी वालों को प्राथमिकता दी जाएगी। कस्टमर केयर , बेव पोर्टल और मोबाइल एप के जरिये ग्राहक डोरस्टेप बैंकिंग सेवा की गुजारिश कर सकता है। अभी चेक बुक हासिल करने और डिमांड ड्राफ्ट व डिपाँजिट रसीद मंगाने जैसी - गैर वित्तीय सुविधाएं उपलब्ध है। डोरस्टेप बैकिंग के तहित सेेवा की मााँँग करते ही एजेंंट के पास इसकी सूचना चली जाएगी। ग्राहक एप या पोर्टल के जरिये यह जानकारी रख सकता है , कि उस वक्त ऐजेंट कहाँ पर है।  अगर क

भाषा की महत्ता समझे

 नई शिक्षा नीति की सबसे विशिष्ट बात भारतीय भाषाओं को भी महत्व देना है। और यदि नई शिक्षा नीति के पालन में भारतीय भाषा के प्रति लगाव पैदा किया जा सके , तो एक महान कार्य हो सकता हैं। बरना हम पश्चिमी भाषा के गुलाम बनते चले जाएंगे। 




महान कवि और समाज सुधारक अज्ञेय जी कहना था , कि भाषा कल्पवृक्ष है। श्रद्धापूर्वक जो उससे मांगो , वह देती है। यदि उससे कुछ मांगा ही न जाय तो कल्पवृक्ष भी कुछ नहीं देता है। दुर्भाग्यवश अतीत में भाषा का प्रशन  झूठी समझ और राजनीति में फंसकर उपेक्षित रहा । हम भूल गए कि भाषा के साथ मनुष्य का संबंध क्या हैं?

याद रहे पहले भाषा ही हमे बनाती है। जिस भाषा को हम जन्म से ही सुनते , जानते है। और जिस परिवेश में रहते है उसी से हम जाने जाते है। यदि उसी की उपेक्षा कर बचपन से ही अन्य भाषा की आराधना हो तो , बच्चे प्रायः किसी भाषा पर अधिकार नही कर पाते । और उनका व्यक्तित्व अधूरा ही रह जाता है।

विश्व के सभी शिक्षा चिंतको ने माना है। कि बच्चों को अपनी भाषा पहले अच्छी तरह सीखनी चाहिए। इसके लिए भाषा का श्रेष्ठतम साहित्य पढ़ना ही एक मात्र साधन है अभी यहाँ ऐसा नही हो रहा है। लगभग सारा ध्यान विज्ञान और अंग्रेजी पर रहता हैं। यह बच्चों के संपूर्ण विकास की दृष्टि से घोर हानिकारक है। इससे बच्चों की अभिव्यक्ति क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।



मन मेंं उठने बाले हर मनोभाव को सटीक शब्दों और वाक्यों में बोलने , लिखने की क्षमता एक बहुत बड़ी शक्ति है। यह न होने से जीवन मे काम भले चल जाय , पर इससे व्यक्तित्व दुर्वल होता है। अपनी भाषा पर पूर्णण अधिकार की प्रेरणा देना बच्चों की सवसे बड़ी भलाई है। 

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